भाग्य बड़ा या पुरुषार्थ?

जानिए, कैसे भाग्य बनता और बिगड़ता है।

भाग्य बड़ा या पुरुषार्थ?

एक सनातन प्रश्न यह प्रश्न सदियों से मानव मन को झकझोरता रहा है।

क्या हमारी सफलता और जीवन का सुख-दुःख भाग्य द्वारा पूर्वनिर्धारित होता है, या फिर हम अपने कर्मों और प्रयासों से अपनी नियति बदल सकते हैं?

भाग्य की भूमिका भाग्यवाद का मानना ​​है कि जीवन में होने वाली हर घटना पूर्वनिर्धारित होती है।

हमारे जन्म से लेकर हमारी मृत्यु तक, सब कुछ पहले से ही लिखा हुआ है। इस विचारधारा के अनुसार, हमारे प्रयासों का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि हम भाग्य के चंगुल से मुक्त नहीं हो सकते।

पुरुषार्थ का महत्व दूसरी ओर, कर्मवाद का मानना ​​है कि हमारा जीवन हमारे कर्मों द्वारा निर्धारित होता है।

यदि हम कड़ी मेहनत करते हैं, अच्छे काम करते हैं और सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, तो हमें सफलता और खुशी प्राप्त होगी।

संतुलन का मार्ग दोनों विचारधाराओं में सच्चाई का अंश है। भाग्य निश्चित रूप से एक भूमिका निभाता है, लेकिन यह सब कुछ नहीं है।

हमारे पास हमेशा अपनी परिस्थितियों को बेहतर बनाने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रयास करने की शक्ति होती है।

कर्मयोग का सार भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग का सार बताया है। उन्होंने कहा कि हमें कर्म करते रहना चाहिए, फल की चिंता किए बिना।

कर्म का फल हमें प्राप्त होगा या नहीं, यह हमारी इच्छा से परे है। हमारा कर्तव्य केवल अपना कर्म पूरी ईमानदारी और लगन से करना है।

निष्कर्ष भाग्य और पुरुषार्थ दोनों ही जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें भाग्य को स्वीकार करना चाहिए,

लेकिन साथ ही हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत भी करनी चाहिए।

कर्मयोग का सच्चा अर्थ यही है।

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https://youtu.be/vGB8-RnHtDo?si=FtxN-K8Zt1BhSi5b

प्रतिलिपि

0:00[संगीत]

0:13इतनी कृपा सावरे बनाए रखना

0:19इत सांवरे बनाए रखना मरते जम तक सेवा के लगाए रख

0:31ने कृपा साव बना के रखना मते दम तक सेवा में खाए

0:42रखना कितनी कृपा सावरे बनाए

0:48रखना मरते दम तक सेवा में लगाए

0:54रखना मरते दम तक सेवा में लगाए रख

1:00[संगीत]

1:21मि [संगीत]

1:31मैं तेरा तू मेरा बाबा तू राजी मैं राजी

1:37तू राधी मैं राधी बाबा तू राधी मैं

1:42राधी तेरे नाम पे लिख दी मैंने इस जीवन की

1:48बाजी इस जीवन की बाजी बाबा इस जीवन की

1:54बाजी लाज तुम्हारे हाथ में बजाए रखे

2:01राज तुम्हारे हाथ में बचाए रखना मरते दम तक सेवा में लगाए

2:12रखना मरते दम तक सेवा में लगाए

2:18रखना इतनी कृपा सावरे बनाए

2:24रखना मरते दम तक सेवा में लगाए रख

2:31हर के दमत सेवा में लए रतना

2:37[संगीत]

3:01हाथ जोड़कर करू प्रार्थना भूल कभी ना जाना

3:27भूल ओम शांति ओम

3:37आज का हमारा विषय है भाग्य बड़ा या

3:45पुरुषार्थ भाग्य को किस्मत या तकदीर भी

3:51कहा जाता है तो हमारे जीवन

3:58में जो कुछ भी प्राप्त होता

4:03है उसके पीछे भाग्य ही आधार होता है

4:11जैसे हमको स्वस्थ सुंदर शरीर मिलता है अच्छे माता-पिता मिलते

4:18हैं अच्छा घर परिवार पड़ोसी नाते रिश्तेदार मिलते

4:24हैं ये सबका मदा भाग्य पर ही होता है

4:33जैसे बच्चा जब स्कूल में जाता है पढ़ने के लिए तो सारे बच्चे पुरुषार्थ करते हैं भ

4:43उसम नंबर बर भी होते हैं लेकिन कुछ एक ग्रुप होता है जो सब टप करना चाहते हैं

4:51अच्छे नंबर लाना चाहते सब पुरुषार्थ करते एक समान करते लेकिन ता कोई एक ही बचा करता

4:58है कारण क्या होता है कारण यह होता है कि

5:04पढ़ाई सब पढ़ते हैं लेकिन जिसके तकदीर में भग में होता है वह जो क्वेश्चन तैयार करता

5:12है वही परीक्षा में आ जाते नंबर ले जाता

5:17है दूसरा कई समान डिग्री

5:25धारी नौकरी के लिए जाते हैं अपलाई करते

5:31हैं उसमें किसी को तो अच्छे नौकरी जब मिल जाती

5:39है किसी को नहीं मिल पाती जबक पुरसा सबने किया पढ़ाई सबने किया डिग्री एक जैसा पाया

5:46फिर भी कोई अवसर बन गया कोई कर्क बन गया कोई चपरासी बन गया कोई व भी

5:53नहीं ये भाग्य का खेल है उसी तरह

6:01जैसे नौकरी में अच्छी नौकरी मिल गई उसके भाग्य में

6:08उसका प्रमोशन करा करके और चच पद को प्राप्त करा दिया और कुछ ऐसे भी कर्मचारी

6:14है जो जीवन उसी पद पर र जा दूसरी

6:20बात कई लोग किसान होते हैं खेती करते

6:25हैं सारे किसान पुरुषार्थ करते हैं हमारे खेत में अधिक से अधिक अन की उपज

6:33हो जुताई गुड़ाई बवाई सिचाई खा सब डालते हैं लेकिन उसम किसी की फसल बहुत अच्छी हो

6:41जाती है किसी की फसल मारी जाती है किसी की फसल

6:47जानवर खा जाते ऐसा क्यों होता है भाग अनुसार कते भी

6:53है भाई हमने तो मेहनत किया भाग्य में नहीं था

6:59चला गया वो प्राप्ति नहीं हो पाई दूसरी तरफ बिजनेसमैन जो होते हैं

7:06बिजनेस करते हैं अब दुकान मान लीजिए कि एक ही चीज की दुकान अगल बगल

7:15है किसी के दुकान में ग्राहकों की लाइन लग जाती है उसकी दुकान चल पड़ती है और बगल

7:23वाले के दुकान में कोई ग्राह जाता नहीं दिन बन नहीं होती उस कारण क्या

7:30पुरुषार्थ दोन समान किया पूजी लगाया दुकान सजाया सुबह से खोलकर बैठ के इंतजार कर रहे

7:38हैं दोनों का एक लेकिन एक बहुत अच्छी आमदनी हो जाती है और दूसरे

7:45की नहीं हो पा जैसे कोई प्रोफेशन है जैसे कोई डॉक्टर

7:53है वकील है कई कई डॉक्टर व करो कमा लेते

8:00मरीजों के नंबर लगते हैं ज समय नहीं मिलता कोई कोई वकील भी लाखों कमा लेते हैं

8:09उनकी फीस लाखों में होती है और कोई कोई ऐसे भी वकील होते हैं जो परिवार चलाने में

8:16भी दिक्कत होती है क्या भाग्य का पढ़ाई दोनों ने पढ़ाई

8:23दोनों ने किया एमबीबीएस दोनों ने किया लेकिन भाग का खेल को आगे निकल जाता है और

8:31कोई पीछे रह जाता है

8:36सु तो यह भाग्य का खेल चलता रहता है भाग्य अपना खेल दिखाता

8:44रहता है जैसे कई घर में संपन्नता होती है सब कुछ

8:51उपलब्ध होता है लेकिन जिनके भाग्य में नहीं रहता वो

8:57उसका उपभोग नहीं कर पाते क्यों कंजूस बुद्धि हो जाती

9:03है उप भोग नहीं करेंगे है लेकिन नहीं करेंगे दूसरा कई कई माताए होती है घर में

9:13जो सास का दर्जा प्राप्त कर लेते हैं तो उनको लगता है कि पूरे घर की जिमरी हमारी

9:22ही चाय नाश्ता भोजन दोनों वक्त बनेगा ताजा वो खाएगी

9:27बासी सु का बच्चा शाम खाए और शाम का बच्चा सुबह खाए अब कहेंगे की क्या करू ब तो खाए

9:36नहीं अब हम को इसको सार्थक करना होता है साड़िया उनके पास रहती है लेकिन पहने व

9:44बहु की छोड़ी हुई साी में नहीं है र में नहीं तो क्या

9:51करें और कई ऐसे भी घर परिवार होते हैं जो अभाव में है गरीब है अच्छे से खाएंगे

10:00अच्छे से पहनेंगे अच्छे से रहते हैं उनकी तकदीर में है कई लोग कहते हैं कि भाई ये देखिए खूब

10:07कमाते हैं लेकिन इनकी दशा देख लीजिए और इसको देखिए कुछ नहीं कमाता है कितना अच्छा

10:13से रहता है शांत से रहता है तकदीर की बात है ना भाई कदीर अपना खेल दिखाती रहती है इसलिए कहते

10:22हैं कि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ मिलने वाला नहीं है इस बात को सब लोग

10:28मानते हैं भाग्य को मानना पड़ता है क्योंकि ये भगत

10:34का खेल सदैव चलता रहता है हमारे साथ बुद्धि रहती

10:41है कई लोग कह देते हैं कि बुद्धि बड़ी है तो क्या बुद्धि उनके पास नहीं

10:48थी जो वकालत फ हो गए डॉक्टर के पास कोई म

10:53नहीं जाता है बुद्धि उनके पास भी थी बुद्धि उनके पास भी थी लेकिन तकदीर का

11:01खेल इसलिए हम देख रहे हैं कि भाई भाग्य जो है प्रबल है क्योंकि भाग्य जैसे जैसे हमको

11:10नचाता है हम वैसे नाचते रहते हैं बुद्धि भी वैसे ही काम करती है अगर कुछ प्राप्ति

11:17की हमको भाग्य में है तो बुद्धि वैसी सु बन जाती है और ऐसा निर्णय लेकर के हमको

11:24आगे बढ़ा देती है अगर भाग्य बना है तो बुद्धि भी तो हो जाती है सही निर्णय नहीं

11:31ले पाती और हम जहां से रह जाते इसलिए कहते

11:38हैं कि किस्मत का खेल निराले मेरे

11:44भैया किस्मत का लिखा कौन टाले मेरे

11:50भैया किस्मत का खेल निराले मेरे

11:56भैया किस्मत के हाथ में दुनिया की डोर है

12:03किस्मत के आगे चले ना किसी का जोर है सब

12:09कुछ है उसी के हवाले मेरे भैया किस्मत का खेल निराले मेरे

12:19भैया किस्मत का लिखा कौन टाले मेरे

12:24भैया किस्मत का खेल निराले में मेरे

12:30भैया किस्मत ने लिखा है जो सुख का

12:35सवेरा कब तक चलेगा ये गम का

12:41अंधेरा एक दिन तो मिलेंगे उजाले मेरे

12:46भैया किस्मत का खेल निराले मेरे

12:52भैया किस्मत का लिखा कौन टाले मेरे

12:57भैया किस्मत का खेल निराले मेरी

13:03भैया भाग्य प्रबल है अब

13:08देखिए सीता जी को देखिए सीता

13:14जी को जन्म लेने के लिए मां का गर्भ नहीं मिला वो भूगर्भ से पैदा

13:21हुई राजा जनक जैसे महा प्रतापी राजा की व पुत्री

13:28थी बड़े ही अच्छे सुखमय जीवन था क्योंकि

13:33वो राजकुमारी थी बड़ी सादी होने को

13:39हुआ तो बड़े तेजस्वी वर से उनका विवाह तय

13:48हुआ लेकिन तब तक परशुराम जी आ गए विग्न पैदा करने के इसी तरह से मामला रफा दफा हुआ विदा

13:57होकर अयोध्या जहा दशरथ जी चक्रवर्ती सम्राट उनकी बह बनकर

14:04आई अभी कुछ दिन ही बीते थे कि मंथरा पैदा हो

14:10ग वो महारानी और राजकुमारी राज घराने की

14:16जो मखमली चाद पर चलती थी उनको जंगल के पथरीले

14:22कंकड़ पर चलना पड़ने अपना खेल दिखाया जंगल में

14:31वहां भी उनको सुख च नहीं मिला तब तक रावण आ गया और रावण के

14:39पहले मामा मार ने अपना माया का खेल दिखाया सोने का रण बन कर आ गया अब यहा थोड़ा सा

14:48हम उसका स्पष्टीकरण करेंगे कि कई लोग कहते हैं कि सीताजी सोने

14:54का मृग देकर उन पर लोभ हो गई हम ये नहीं समझ पाती कि वो सीता जो

15:02महारानी थी महल सोने चांदी के अकट भंडार थ उनको त्याग करके जंगल में आई

15:10थी तो एक छोटे से हिरण को लोभ हो जाएगी सोचने की बात

15:17है लोभ नहीं हुई पहली बात दूसरी बात वो इतनी मूर्ख तो

15:25नहीं थी कि सोने का हिरण उछल करे तो मति बन

15:31जाएगा य भी उनको पता हुआ क्या था हुआ यह था की उस हिरण का कलर जो सुनहला था और

15:40इतना सुंदर उसका रूप था कि वो उनके मन में भा गया तो क दि हिरण हमको

15:49चाहिए ठीक है राव उनका हरण करके लंका में चला लेक चला गया और श बाट में ब दिया

15:59सुबह शाम रोज आकर उनको धमका था अब य एक पॉइंट और आती है स्पष्ट करने के लिए जब

16:07रावण आता था तो उन्होने एक नका निकाला और रावण अपने बीच में रख

16:14दिया प्रश् महा प्रतापी बलवान रावण से क्या किनका रक्षा

16:20करेगा इसका रहस क्या है इसका रहस य

16:26है किसी भी स्त्री को महिला को अपने सुरक्षा के लिए 100 पर विश्वास

16:37अपने भाई पर होता है इसके अलावा किसी पर ह पर होता ठीक है

16:42को ाल बात है लेकिन भाई से ज्यादा उनको विश्वास कि नहीं होता जानती है किसी भी

16:49विषम परिस्थिति में भाई हमारे साथ रहेगा हमारी रक्षा भी

16:55करेक सीताजी का जन्म भूगर्भ से हुआ और तीन का भी भूगर्भ से हुआ इस नाते दोनों आपस

17:02में भाई बहन हो गए इसलिए व तीन को बीच में रखती थी और कहा भी जाता है कि डूबते को

17:11तिनके का सहारा क्यों क्योंकि लंका में उनका अपना कलाने वाला कोई नहीं था इसलिए

17:17उन्होने नके का सहारा इसके बाद य हुआ रावण का बध हुआ

17:25सीताजी वापस अयोध्या के र्ष का पूरा हो गया सीताजी वापस जाने के लिए तैयार हुई अब

17:34लगा कि अनके सुख के दिन आएंगे तब तक अग्नि में प्रवेश करना

17:39पड़ा अग्नि को पार करके गई अयोध्या में अब हुआ कि भाई तो सब खत्म हो गया झमेला अब

17:47इनके सुख के दिन आ जाए तब तक धो भी आ

17:52गया वो महारानी उस समय गर्भवती थी वो

17:58महारानी जिनको अपने बच्चों को जन्म महल में देना चाहिए था उसके लिए ऋषि की कुटी

18:06में जाना पड़ा वहा उनको अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा सीताजी के पुरुषार्थ में

18:12क्या कमी थी भाई उ तो जब तक उन्होने जन्म लिया तब से वो पुरुषार्थ करती रही फिर भी

18:19भाग्य का खेल देखिए उनकी जीवन में सुख

18:24नहीं के बराबर था कहा मिला मिला राल में

18:30मिला अब रामचंद्र जी को देखिए रामचंद्र

18:36जी का डिक्लेयर हो गया कि भाई ये महाराज बनेंगे राजा घोषित कर दिए गए पूरा राज्य

18:44में बात फैल गई कि श्री रामचंद्र जी राजा हो गए और फर्मेट के तौर पर

18:51उनका तो करना था कि सुबह जो है उनका राज तिलक

18:57होगा तब तक क्या हुआ भग ने अपना खेल दिखाया और सुबह होने से पहले उनको बनवास

19:04का डर मिल उन्होने उसको स्वीकार किया और वन की र

19:11प्रस्थान कि वहा गए

19:17अब जंगल में जो भी उनका पुता था उन्होने किया

19:22ही पंचवटी से कुछ ही दूर पर उनका हाल

19:31कौशल उन्होने कभी भी अपने नाना को सूचना नहीं दिया कि हमको मदद

19:37चाहिए मान सकते थे उनके पास राजा थे उनके पास सेना सब साधन थे लेकिन उन्होने अपने

19:43पुरुषार्थ के ब सारा काम उन्होने किया अब राजा दशरथ चक्रवर्ती

19:52सम्राट क्या उन्होंने सपने में भी सोचा था एक दिन ऐसा भी आ

19:59पुत्र मोह में उनको रग रने

20:05पड़ ल इसके अलावा पांडव के लिए पांडव पाच भाई महा

20:16परमवीर इसके अलावा श्री कृष्ण जैसे महान

20:22तेजस्वी आत्मा की उन पर छत्र छाया इसके बावजूद

20:28उनको 13 साल का वनवास मिला एक साल का अज्ञातवास वो राजा जो उनके

20:36कद में बहुत छोटे थे उनकी उनलोगों को सेवा करनी पड़ी भ का खेल

20:45देख इसके अलावा राजा हरिश्चंद्र की बात आती राजा हरिश्चंद्र सतवादी थे वह भी बहुत

20:52बड़े राजा थे क्या उन्होने कभी सोचा था एक दिन हमें डोम की नौकरी करनी पड़गी अपने ही

21:00बच्चे के लिए अपने ही महारानी से कर के रूप में साड़ी फरवाना पड़ेगा सोचा था उ

21:08भाग्य का खेल इस तरह से भाग्य अपना खेल दिखाता रहता

21:15है तकदीर अब हम देखते

21:21हैं भाई ये जो भाग्य का खेल है ये तो प्रबल है दिखाई दे रहा है कि हम

21:30प्रबल है लेकिन अब य एक प्रश्न उठता है कि भाग्य

21:38बनता कैसे है तभी तो कोई भाग्यशाली कोई दुर्भाग्य शली होते हैं बनता है तभी तो

21:43होता है अब जैसे एक बार दो मित्र

21:51थे मित्र थे दोनों लेकिन स्वभाव उनका अलग अलग था एक सच्चा ईमानदार और भक्त था दूसरा

22:01बेईमान और दुराचारी था नास्तिक दोनों एक साथ क जा रहे थे रास्ते

22:09में जो बेईमान दोस्त था उसको पाज रप की गड्डी पड़ी मिल ग उ बड़ा खुश हो गया देखा

22:17तुम तो बार बार कहते हो सुधर जाओ सुधर जाओ अरे तुम सुधर कर क्या क

22:24मिल अभी दो चार कदम ही आगे बढे थे दोस्त उसके पैर में काटा चुप गया व दोस्त और खुश

22:32हो गया देखा और करो पूजा और दिखाओ स जनता काटा चप गया बात विपरीत

22:40लग जो काम उसके साथ होने था व इनके साथ हो गया और जो इसके साथ होना था उसके साथ बात

22:50बैठ रही थी मन में जाते जाते रास्ते में बहुत बड़ी

22:55महात्मा कीटी पड़ती जो सज्जन दोस्त था उसने सोचा कि क्यों ना महात्मा जी से इसके बारे में

23:02पूछा जाए क्योंकि बड़ाई तो दुविधा है भाई बड़ी गड़बड़ी हो अब वही इसका समाधान

23:08करेंगे दोनों गए कोरी बात उन्होने बता दिया उन्होंने ध्यान

23:16लगाया और जब उन्होंने आंखें खुला कर बताया कि तुम लोग इसलिए दुविधा में हो कि

23:23तुम वर्तमान देख रहे हो और मैं तुम लोगों का भविष्य देखकर आ रहा हूं

23:29पिछले जन्म में ये जो दुराचारी व्यक्ति है य बड़ा सदाचारी था भक्त था सज्जन था बड़

23:37लोगों की मदद करता था बड़ा पुण्य काम करता था इसको पज का अवार्ड मिलना लेकिन तब शरी

23:46छया और इस ज में इसका पाट बदल गया दुराचारी हो गया बमान हो

23:53गया इसका घटने लगा और परिणाम स्वरूप 5000

23:59प्रात मिलना चाहिए 50 और यह जो व्यक्ति है ये पिछले जन्म में

24:06बड़ा ही पापी पाप कम करता था दुराचारी था तो इसको सूली पर चढ़ने का दंड दिया

24:15गया तब तक इसका शरीर छूट गया लेकिन इस जन्म में इसका रोल बदल गया पाट बदल

24:22गया सज्जन हो गया भक्त हो गया शेष कम करने लगा तो उसका वो सजा कम होते होते कांटा

24:31चुभने तक आ गया बात तकदीर की है यही बात है कि दोनों के

24:40जो भाग्य में हुआ अब सज्जन य दुर्जन बन गया और वहा दुर्जन था य सज्जन बन गया ये

24:47ड्रामा का खेल चलता ल अब प्रश्न जो हम लोगों ने किया था कि आखिर ये भाग्य

24:56दुर्भाग्य बनने का आधार क्या है कैसे य बनता है तो उसका आधार है

25:03पुरुषार्थ पुरुषार्थ की रे

25:11है तो पुरुषार्थ अब य कई

25:17लोग कन्फ्यूज हो सकते भाई एक बार आपने कहा की जो भाग्य बन

25:24गया उसको कोई पुरुषार्थ बदल नहीं स और अभी क की पुरुष से भाग्य बनता है तो उसम

25:32ज्यादा मने की जरत नहीं नहीं उसका कारण यह

25:37है कि हम जो पुरुषार्थ करते हैं उसके आधार

25:42पर हमारे भग का निर्माण होता और जो भाग्य का निर्माण हो गया व चेंज नहीं होगा किसी

25:50पुरुषार्थ हम पुरुषार्थ से अगला श्रेष्ठ भाग्य बना सकते लेकिन उस भाग्य को नहीं

25:57बदल स अब जो भाग्य बन गया उसको सहजता से स्वीकार

26:02करना ये भी पुरुषार्थ

26:08जैसे श्री रामचंद्र जी राजा घोषित हो गए व क सकते थे हम क्यों बन जाए भाई तो

26:16राजा हमारा हुकम चलेगा लेकिन उने ऐसा नहीं किया उन्होने

26:21अपने भाग्य को सहायता से स्वीकार कर लिया और इसका परिणाम क्या हुआ

26:28अयोध्या में व श्री रामचंद्र जी कहलाते थे लेकिन

26:34जब बनवास से लौटे तो उनका नाम हो गया मर्यादा

26:40पुरुषोत्तम भगवान राम पुरुषार्थ का फल

26:45मिला दूसरी तरफ जो पांडव लोग थे व महा

26:51पराक्रमी थे उन्होंने दत कीरा में उन्होंने हार मान लिया व क सकते थे तो

27:01खेल है कड़ा है हम क्यों माने इसको प्रिकल नहीं माने हम नहीं जाएंगे किसी की क्षमता

27:06थी जबरदस्ती भेज देते उनको नहीं थी लेकिन उने सहायता से अपने भाग्य को स्वीकार करने

27:15का पुरुषार्थ किया तो अंत में विजय हुए उसका फल भी

27:22मिला उसी तरह से राजा हरिश्चंद्र भी सत्यवादी थे वो भी कह सकते थे दान करना है

27:29हमने सोना चांदी सबन राजन नहीं करेंगे य हमारी इच्छा पर है लेकिन उन्होने

27:35ऐसा नहीं किया अपने सत्य वचन को निभाया परिणाम क्या हुआ पुन उनको सारा राज

27:43सब धन संपदा वापस मिल गई और इतिहास में उनका नाम हो गया

27:49सत राजा हरिश्चंद्र सत्यवादी मिला हम जो अपने भाग्य को सहजता से भाग्य

27:57को लड़ते भाग्य से लड़ने का कोशिश करते हैं सफलता तो मिलती नहीं अपना हरासमेंट करते हैं और

28:05विपत्ति दुख बढ़ती है इसलिए जो तकदीर में है हमारे कर्मों का फल हमारी उपज है उसको

28:13सहजता से हमें स्वीकार करना चाहिए अब

28:19हम तीन ऐसे प्रसंग की चर्चा करेंगे जिससे सिद्ध हो जाएगा कि पुरुषार्थ ही है जिसे

28:29हम महान आत्मा पुण्य आत्मा श्रेष्ठ आत्मा बन सकते हैं वो तीन प्रसंग पहला

28:40है कि जब श्री रामचंद्र जी लंका विजय के बाद

28:48वापस अयोध्या आए तो उनकी तीनों [संगीत]

28:54माताएं सुमित्रा कौशल्या और कैकई तीनों माताए उनके स्वागत के लिए खड़ी

29:02थ अयोध्या में सब यही मानते थे सबको यही विश्वास था कि कक ने जो दुष्कर्म

29:11किया इसके चलते शी रामचंद्र जी उनके पैर स्पर्श दूर है उनकी तरफ देखेंगे नहीं आगे

29:18बढ़ जाए सबको यही विश्वास खुद ककई के मन में भी यही बात था कि हमने राम के

29:26प्रति बड़ा दुष्कर्म किया भलो 14 वर्ष पश्चाताप की अग्नि में

29:34जलती रही क्योंकि उनके राम से बहुत प्रेम

29:41था भाग्य का खेल मंथरा निमित्त बनी और उसे व पाप कर्म हो

29:47गया रामचंद्र पुष्पन से उतर के आगे बढ़े सब आश्चर्य चकित रह

29:55गए जब श्री रामचंद्र जी ने ने सबसे पहले ककई के चरण स्पर्श

30:02की ककई गदगद होई खुश हो गई अरे भाई जिस बात की हमको स्वप्न भी उम्मीद ना हो वो

30:10काम हो जाए कितनी खुशी हो उन्होने बहुत सारा आशीर्वाद

30:17दिया श्री रामचंद्र जी को गले लगाई और कहा कि हे

30:22राम मुझे आज अभी पता चला कि तुमको लोग भगवान क्यों कहते हैं

30:30दूसरा प्रसंग है कि जब पांडव लोग विजय हो गए युद्ध

30:37समाप्त हो गया तो यह नियम था कि जो राजा विजय होते थे उनको राजस यज्ञ करना पड़ता

30:45था इसी प्रसंग में राजसू यज्ञ का

30:51आयोजन था और कोई भी यज्ञ हो कोई भी

30:57अनुष्ठान हो कोई भी फंक्शन हो कोई भी उत्सव इसके लिए नियम ये है कि सबसे पहले

31:05सबकी बेहद की मीटिंग होती है सब इकट्ठे होते और उसम तय किया जाता है कि हमको करना

31:13क्या है इसके बाद लिस्ट बनती है कि इस कार्य में कौन कन चीजों की आवश्यकता

31:20होगी इसके बाद दूसरी लिस्ट बनती है इसमें कौन कौन कौन सा काम करेंगे कौन

31:28जिमेवारी लेंगे सिस्टम है ऐसा होता है होना चाहिए य सब हो गया अंत में श्री कृष्ण ने

31:38कहा कि अरे भाई सारा कार्यक्रम फाइनल हो गया हमको तो कोई जिमरी

31:44नहीं तब युध ने कहा कि केशव आप सबसे अति

31:51श्रेष्ठ हम आपको कोई काम कैसे दे सकते और पूरे यज्ञ की तो आप ही की है आपके बिना तो

32:01कुछ होगा ही नहीं फिर भी हम आपकी भावना को अवमानना

32:07नहीं करेंगे अगर चाहते ही है कि हम कुछ करे तो आप स्वयं चुन लीजिए हम आपको कोई

32:14काम नहीं दे सकते तब श्री कृष्ण ने कहा मैं दो काम

32:20करूंगा एक काम तो करूंगा जितने जूते तितर बतर होंगे

32:28सबको उठा कर के क्रम से रखूंगा ताकि देखने में अच्छे लगे और दूसरा काम करूंगा ल भोजन कर लेंगे

32:37तो जूठे सारे बर्तन उठाकर मैं जगह इकठा कर

32:45युध भाव विबल हो ग उनकी आंखों में आंसू आ गए पैर पकड़

32:54लिए और कहा कि हे केशव आप आप तो श्रेष्ठ है मुझे मालूम था लेकिन आपको लोग भगवान

33:02क्यों कहते हैं मुझे अभी पता च हमारा पुरुषार्थ ही हमको उच परद या सम्मान मान

33:09देता है तीसरा प्रसंग है

33:15क्राइस्ट क्राइस्ट को सूली पर चढ़ने के लिए आदेश हो गया और उस आदेश में क्राइस्ट

33:21कोई अपराधी नहीं थे उने कोई पाप कर्म नहीं किया था वो उनके अपने ही दो शिष्य के

33:28यंत्र के द्वारा वो स्थिति बनी थी और यह बात को

33:34मालूम सूली प चढने से पहले उन्होने कहा कि मैं उन दोनों शिष्य को मिलना चाहता

33:41हूं शिष्य र ग अरे भाई गुरुजी को तो मालूम है सारा बात अगर उनके हम सामने जाएंगे तो

33:48निश्चय वो बहुत ही क्रोध में होंगे और बड़ा कड़ा श्राप द लेकिन गुरु का आदेश जाना तो जरूरी था ते

33:58कापते हाथ जोड़े हुए हाजिर हुए तब ने कहा हे प्रभु इन दोनों ने क्या किया है इस

34:07बात नहीं जानते है इसलिए आप इन्ह क्षमा

34:12कर य सुनते दोनों श रोने लगे उनके पैर पकड़ लिए और कहा कि

34:22गुरुदेव आप श्रेष्ठ तो है ही हम सब जानते थे लेकिन आप भगवान क्यों मानते हैं हमको

34:30अभी पता ये हमारे पुरुषार्थ का

34:36परिणाम जैसा हमारा पुरुषार्थ वैसा हमारा मान समान होगा वैसा हमारा श्रेष्ठ भाग्य बनेगा

34:46और वही हमको आगे तक भोगना

34:52होगा अब अंत में सात संग

34:59सात संकल्प य है पहला

35:05है अगर देखना है तो अपनी अच्छाइयों को

35:11देखि खामिया निकालने के लिए तो लोग है दूसरा है अगर आगे बढ़ना है तो पैर आगे

35:20रखिए पीछे खींचने के लिए तो लोग है ना प्यार करना तो खुद से कीजिए नफरत करने

35:30के लिए तो लोग

35:36है सपना देखना है तो ऊचा देखिए नीचा दिखाने के लिए तो लोग है

35:43ना अपने मन में जुन की चिंगई भड़का जलने के लिए तो लोग है

35:53ना अपनी आप अलग एक पहचान बनाइए भीड़ में चलने के लिए तो लोग

36:01है और सातवा अंतिम है कि आप दुनिया को कुछ करके दिखाइए तालिया बजाने के लिए तो

36:10[प्रशंसा]

36:15लोग इसलिए कहा कि तकदीर बनी बन कर

36:25बिगड़ी माया ने हम में बर बाद किया तकदीर

36:32बनी बन कर बिगड़ी माया ने हमें

36:39बरबाद किया दुख दर्द की मार तुम भी सुनो

36:47बाबा ने हमें आबाद किया दुख दर्द की मारो तुम भी सुनो

36:56बाबा ने हम आ बाद किया ओम

37:01[संगीत] शांति लाइ

37:08वा शब्दों प

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